सुनने में अजीब लगे पर जयपुर के राधेश अग्रहरी ने 7 साल की कड़ी रिसर्च के बाद चिकन फाइबर साफ कर कपड़ा और पेपर बना डाला और करोड़ों की कंपनी खड़ी कर दी।
अक्सर देखा गया है कि पोल्ट्री वेस्ट दुनिया में गीले कचरे की सबसे बड़ी समस्या रही है पर जयपुर के राधेश ने इस वेस्ट को उपयोगी बना डाला एवं यह पेटेंट पूरी दुनिया में सिर्फ इन्हीं के नाम है।
राधेश ने करीब 30000 पेड़ों को काटने से बचाया जिसमें लगभग 7.62 लाख किलो कार्बन फुटप्रिंट कम हुआ। उनकी इन स्टार्टअप में कई आदिवासी महिलाओं को रोजगार दिया जो हाथों से सेनीटाइज हुए पंखों को अलग कर धागा और फिर कपड़ा और फिर पेपर बनती है।
पंखों से बने कपड़ों में गर्माहट पशमीना से 10 गुना ज्यादा
इसकी प्रोसेसिंग में पंखों के सफाई के बाद 100 डिग्री भाप प्रक्रिया और फ्रीजिंग जैसे 30 तरीकों से सेनीटाइज किया जाता है। राधेश ने जयपुर और पुणे में 150 कूड़ा उठाने वालों को ट्रेनिंग देकर 3 साल में 70000 किलो पंख इकट्ठा कर चुके हैं। और इन पंखों से बने कपड़ों का गर्माहट पशमीना से लगभग 10 गुना ज्यादा होता है।एक मुर्गी में 70 ग्राम पंख मिलते हैं। 1 किलो पंखों से 12% कपड़ा और बाकी बचे 88% से पेपर बनता है। सफेद कागज बनाने के लिए लगभग 200 लीटर साफ पानी चाहिए जबकि चिकन फाइबर से बने पेपर के लिए 10 लीटर खारा पानी चाहिए जिसका 80 परसेंट दोबारा इस्तेमाल कर सकते हैं।