ईडी नें अपनी सप्लीमेंट्री चार्जशीट में दावा किया है कि लैंड फॉर जॉब मामले में मुख्य साजिश करता पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव है। चार्जशीट में कहां गया है कि तत्कालीन रेलवे मंत्री लालू प्रसाद और उनके परिवार ने रेलवे में नौकरी देने के नाम पर लोगों से रिश्वत के तौर पर जमीन के टुकड़े लेने का निर्णय लिया था एवं उक्त जमीन पर अभी लालू के परिवार का कब्जा है।
लालू ने घोटाले की साजिश कुछ इस तरह रची थी की जो जमीन जॉब के बदले रिश्वत के तौर पर लालू प्रसाद यादव ने लिया था उस जमीन पर कंट्रोल तो उनके परिवार का हो लेकिन जमीन सीधे तौर पर इनसे या परिवार से लिंक ना हो पाए। राउज एवेन्यू कोर्ट ने हाल ही में इस मामले में लालू प्रसाद और उनके दोनों बेटे तेजस्वी व तेज प्रताप को समन जारी किया था। 7 अक्टूबर को इन्हें पेश होने का आदेश दिया गया है जिसमें तेज प्रताप को इस मामले में पहली बार समन किया गया है।यूपीए सरकार के दौरान जब लालू प्रसाद रेल मंत्री थे, तब उनके परिवार द्वारा उपहार पत्रों और फर्जी कंपनियों के माध्यम से कम कीमत पर कथित रूप से अर्जित भूमि को ईडी द्वारा धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए), 2002 के तहत “अपराध की आय” (पीओसी) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।ईडी ने आरोप लगाया कि लालू प्रसाद ने अपने परिवार और सहयोगियों के माध्यम से पीओसी के अधिग्रहण को छिपाने के लिए आपराधिक साजिश रची।
जमीन लेने का निर्णय लालू का था
ईडी ने अपने चार्जशीट में कहा है कि लालू ने खुद ही रिश्वत में जमीन लेने का निर्णय लिया था जिसमें उनके साथ उनका परिवार और करीबी अमित कत्याल दे रहे थे। लालू के परिवार ने इस प्रकार से अपने आसपास की जमीन भी कौड़ियों के नाम पर खरीदी थी। यह जमीन पटना के महुआ बाग में स्थित है इनमें से 4 जमीन सीधे रूप से राबड़ी देवी से जुड़ी हुई है। महुआ बाग गांव से लालू का काफी पुराना रिश्ता है।ईडी ने कहा कि जांच से पता चला है कि मुख्य रूप से पटना के महुआ बाग में जमीन मालिकों को रेलवे में नौकरी दिलाने का वादा करके अपनी जमीन औने-पौने दामों पर बेचने के लिए लालच दिया गया था, उस समय लालू प्रसाद मंत्री थे।इनमें से कई भूखंड यादव परिवार के पास पहले से मौजूद जमीनों के नजदीक स्थित हैं। ईडी ने खुलासा किया कि जांच के दायरे में आने वाली सात में से छह जमीनें कथित तौर पर लालू प्रसाद की पत्नी राबड़ी देवी से जुड़ी हैं और उन्हें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हासिल किया गया था।एजेंसी ने पाया कि मेसर्स ए.के. इंफोसिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड और अन्य संस्थाओं का उपयोग भूमि अधिग्रहण और नौकरी के बदले जमीन घोटाले के बीच संबंध को धुंधला करने के लिए एक और परत जोड़ने के लिए किया गया था।
महुआ बाग के जुलम मदारी राय, किशन देव राय लालबाबू राय और अन्य ने लालू प्रसाद और रावड़ी देवी को जमीन दी थी। राबड़ी देवी ने 1990 में महुआ बाग में प्लाट संख्या 1547 में एक टुकड़ा खरीदा था जिसका व्यावसायिक लाभ के लिए लालू ने अपने ओएसडी भोला यादव के माध्यम से जमीन की पहचान की। यह जमीन लालू या उनके परिवार के नाम के साथी ही मेसर्स एके इन्फो सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड हृदानंद चौधरी और ललन चौधरी के नाम पर हस्तांतरित की गई है।भोला ने जांचकर्ताओं के समक्ष स्वीकार किया है कि उसने यादव परिवार की जमीन के निकट के भूस्वामियों को रेलवे में नौकरी दिलाने के बदले में अपनी संपत्ति बेचने के लिए राजी किया था।ईडी ने कहा कि संपत्तियां राबड़ी देवी, हृदयानंद चौधरी और ललन चौधरी के कार्मिक कर्मचारियों जैसे बिचौलियों के माध्यम से स्थानांतरित की गईं।
तेजस्वी ने कहा कि उन्हें कंपनी के कामकाज के बारे में बहुत सी जानकारी नहीं है। हालांकि, उन्होंने नई दिल्ली के न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी में संपत्ति में किए गए निवेश को स्वीकार किया, जिसके बारे में एजेंसी को संदेह है कि इसे घोटाले के पैसे से खरीदा गया था।लालू प्रसाद ने भूमि अधिग्रहण में किसी भी तरह की संलिप्तता से इनकार किया और लेन-देन में शामिल कंपनियों और व्यक्तियों के बारे में अनभिज्ञता का दावा किया। लेकिन, ईडी ने कहा कि जांच इन दावों का खंडन करती है, जिसमें नियुक्तियों और भूमि सौदों में उनकी प्रत्यक्ष भूमिका को दर्शाया गया है।
चार्जशीट में ईडी ने कहा कि ए.के. इन्फो सिस्टम जमीन अधिग्रहण के बाद 13 जून 2014 को राबड़ी देवी को 85% और तेजस्वी यादव को 15% शेयर ट्रांसफर कर दिए। इससे वह मेसर्स ए.के इन्फो सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड के पास मौजूद भूमि के मालिक बन गए। 1.89 करोड़ों रुपए की संपत्ति को लालू प्रसाद यादव के परिवार वालों ने एक लाख रुपए कीमत देकर अपने कब्जे में कर लिया।